
आज सावन सोमवार के दिन मैं मंदिर गया तो पुजारी जी बता रहे थे कि तांबे के पात्र में दूध नहीं चढ़ाना चाहिए। फिर मैंने अपना पात्र देखा जो तांबे का था, और उसमें जल व दूध दोनों ही मिला हुआ था। मैंने कुछ कहा नहीं, लेकिन यह बात मेरे मन में अटक गई कि आख़िर क्यों नहीं चढ़ाना चाहिए?
मैंने तो दोनों मिलाकर ही चढ़ा दिया था। परंतु यही सोच रहा था कि इसके पीछे का धार्मिक, शास्त्रीय कारण क्या हो सकता है? साथ ही वैज्ञानिक कारण भी लोगों को जानना चाहिए। इसी उद्देश्य से यह लेख लिख रहा हूं, और साथ ही कुछ प्रमाणिक संदर्भ (references) भी दे रहा हूं।

धार्मिक और शास्त्रीय कारण
1. अगम शास्त्रों में निषेध
कामिकागम (Kāmikāgama), पूर्व भाग:
“ताम्र पात्रेण क्षीरं न समर्पयेत्। क्षीरोपचारे पात्रं रौप्यं वा मृत्तिकं शुभम्।”
अर्थ: तांबे के पात्र से दूध अर्पित नहीं करना चाहिए। इसके लिए चांदी या मिट्टी का पात्र शुभ माना गया है।
2. शिव पुराण में उल्लेख
शिव पुराण, रुद्र संहिता, अध्याय 11:
“ताम्र पात्रेण गंगाजलमपि सम्प्रयुक्तं भवेत् पवित्रम्। न क्षीरं तु तस्मिन पात्रेण शिवे समर्पणीयम्।”
अर्थ: तांबे के पात्र से गंगाजल चढ़ाना पवित्र माना गया है, लेकिन दूध उसी पात्र से शिवलिंग पर अर्पण करना अनुचित है।
3. धर्मसूत्रों का दृष्टिकोण
गौतम धर्मसूत्र 8.18:
“शुद्धं द्रव्यमेव देवानां प्रीणनाय भवति।”
भावार्थ: केवल शुद्ध और सात्विक द्रव्य ही देवताओं को संतुष्ट करते हैं। यदि पात्र के कारण दूध दूषित हो जाए, तो वह पूजन योग्य नहीं माना जाता।
4. चरक संहिता का दृष्टिकोण
चरक संहिता, सूत्रस्थान 27.297:
“ताम्रं क्षीरसंगमात् विषवत् संप्रकल्पते।”
अर्थ: तांबे और दूध का मिलन विष के समान प्रभाव उत्पन्न कर सकता है।

वैज्ञानिक विश्लेषण
तांबे में मौजूद तत्व दूध के लैक्टिक एसिड और प्रोटीन से प्रतिक्रिया कर हानिकारक तत्व बना सकते हैं।
जब दूध में जल मिला दिया जाए, तो प्रतिक्रिया की तीव्रता थोड़ी कम हो जाती है, क्योंकि लैक्टिक एसिड की सांद्रता घट जाती है। इससे रासायनिक प्रतिक्रिया धीमी होती है, और दूध थोड़ी देर तक खराब नहीं होता। परंतु यह केवल अस्थायी राहत है।
अतः दूध और जल दोनों को अलग पात्रों में शिवलिंग पर चढ़ाना ही उचित है।
निष्कर्ष
🔸 जल मिलाने पर तांबे के पात्र में दूध जल्दी खराब नहीं होता, लेकिन यह केवल प्रतिक्रिया को धीमा करता है, रोकता नहीं।
🔸 धार्मिक दृष्टि से तांबे से दूध चढ़ाना वर्जित है।
🔸 वैज्ञानिक दृष्टि से तांबे और दूध का संपर्क खतरनाक हो सकता है।
🔸 आयुर्वेद भी इसे विष समान मानता है।
🔸 इसलिए शिवलिंग पर दूध चढ़ाने के लिए स्टील, चांदी या मिट्टी के पात्र का उपयोग करें।
🔸 तांबे का उपयोग केवल जल अर्पण के लिए करें।
संदर्भ सूची
1. कामिकागम पूर्वपद – अभिषेक विधि
2. शिव पुराण – रुद्र संहिता, अध्याय 11
3. गौतम धर्मसूत्र 8.18
4. चरक संहिता – सूत्रस्थान 27.297
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