

भारतीय संस्कृति में प्रत्येक माह का अपना एक विशेष महत्व है, लेकिन इन सब में श्रावण मास (या सावन का महीना) का स्थान अत्यंत ही अनूठा और पवित्र है। यह वह समय है जब प्रकृति अपने चरम सौंदर्य पर होती है, चारों ओर हरियाली छा जाती है, और वातावरण में एक अद्भुत शीतलता व सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इस वर्ष, जुलाई 2025 में 11 तारीख से शुरू होकर 9 अगस्त 2025 तक चलने वाला श्रावण मास भगवान शिव की आराधना और आध्यात्मिक उन्नति के लिए समर्पित है। यह केवल धार्मिक अनुष्ठानों का महीना नहीं, बल्कि मानव मन, शरीर और आत्मा के कायाकल्प का भी एक अवसर है।
इस विस्तृत लेख में, हम श्रावण मास के आध्यात्मिक, पौराणिक और वैज्ञानिक महत्व पर गहराई से प्रकाश डालेंगे। हम यह समझने का प्रयास करेंगे कि सदियों से चली आ आ रही यह परंपराएं क्यों आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं और कैसे शिव आराधना हमें बाहरी दुनिया की अशांति से दूर करके आंतरिक शांति और जीवन में सकारात्मक परिवर्तन की ओर ले जा सकती है।
श्रावण मास क्या है? (What is Shravan Maas?)
श्रावण मास हिन्दू पंचांग का पाँचवा महीना है, जो आमतौर पर जुलाई और अगस्त के महीनों में पड़ता है। यह वर्षा ऋतु का चरम काल होता है, जब धरती जल से तृप्त होती है और हरियाली से आच्छादित हो जाती है। श्रावण मास भगवान शिव को समर्पित है, जिन्हें सृष्टि का संहारक, पालक और योगीश्वर माना जाता है। मान्यता है कि इस पूरे माह में भगवान शिव अपनी अर्धांगिनी माता पार्वती के साथ धरती पर वास करते हैं और अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
- 2025 में श्रावण की तिथियाँ (महाराष्ट्र के संदर्भ में):
- श्रावण मास प्रारंभ: 11 जुलाई 2025 (शुक्रवार)
- श्रावण मास समाप्त: 9 अगस्त 2025 (शनिवार), इसी दिन रक्षाबंधन भी है।
- श्रावण सोमवार व्रत:
- पहला सोमवार: 21 जुलाई 2025
- दूसरा सोमवार: 28 जुलाई 2025
- तीसरा सोमवार: 04 अगस्त 2025
- चौथा और अंतिम सोमवार: 11 अगस्त 2025 (यदि पूर्णिमांत कैलेंडर के अनुसार सावन 11 अगस्त तक चलता है, अन्यथा 4 अगस्त अंतिम होगा जैसा कि द्रिक पंचांग में 9 अगस्त को श्रावण समाप्ति बताई गई है)।
- सावन शिवरात्रि: 23 जुलाई 2025 (बुधवार)
श्रावण मास का आध्यात्मिक महत्व (Spiritual Significance of Shravan Maas)
श्रावण मास को ‘शिवमय’ मास कहा जाता है। इस महीने में की गई शिव आराधना का फल कई गुना अधिक मिलता है। इसके पीछे कई गहन आध्यात्मिक कारण हैं:
1. शिव-पार्वती का मिलन और उनका धरती पर वास
पौराणिक कथाओं के अनुसार, श्रावण मास में ही माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी और अंततः उन्हें प्राप्त किया। इस महीने में भगवान शिव और माता पार्वती कैलाश छोड़कर धरती पर वास करते हैं, विशेषकर ससुराल में (समुद्र मंथन की कथा से जुड़ा)। इसलिए, इस माह में उनकी एक साथ पूजा करने से वैवाहिक जीवन में सुख-शांति और प्रेम बढ़ता है। अविवाहित कन्याएं उत्तम वर की कामना के लिए श्रावण सोमवार का व्रत रखती हैं।
2. समुद्र मंथन और शिव का विषपान
श्रावण मास का संबंध समुद्र मंथन की उस महत्वपूर्ण घटना से भी है, जब भगवान शिव ने ‘हलाहल’ नामक विष का पान करके सृष्टि को विनाश से बचाया था। इस विष के प्रभाव को कम करने के लिए देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया था। यही कारण है कि इस महीने में शिवलिंग पर जल चढ़ाने (जलाभिषेक) का विशेष महत्व है, क्योंकि यह शिव के प्रति कृतज्ञता और ब्रह्मांड के कल्याण की भावना को दर्शाता है। यह घटना दर्शाती है कि शिव कितने कल्याणकारी और त्यागी हैं।
3. त्रिदेवों में शिव की विशिष्ट भूमिका
हिन्दू धर्म में ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) की त्रिमूर्ति सृष्टि के सृजन, पालन और संहार का प्रतिनिधित्व करती है। शिव संहार के देवता होने के साथ-साथ ‘पुनरुत्थान’ और ‘परिवर्तन’ के भी प्रतीक हैं। श्रावण मास में उनकी पूजा हमें यह सिखाती है कि जीवन के चक्र में विनाश के बाद ही नवीन सृजन संभव है। यह महीना अहंकार को नष्ट कर, नए विचारों और सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण करने का अवसर प्रदान करता है।
4. ध्यान और आत्म-चिंतन का अनुकूल समय
वर्षा ऋतु का शांत और शीतल वातावरण ध्यान और आत्म-चिंतन के लिए अत्यंत अनुकूल होता है। इस दौरान बाहरी गतिविधियों में कमी आती है, जिससे व्यक्ति का मन आंतरिक साधना की ओर प्रवृत्त होता है। शिव को योगीश्वर माना जाता है, और श्रावण में उनकी आराधना हमें मन को शांत करने, एकाग्रता बढ़ाने और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करने में मदद करती है।
- शिव के विभिन्न रूप और उनका महत्व: श्रावण मास में शिव के विभिन्न रूपों जैसे नीलकंठ (विषपान के कारण), नटराज (नृत्य के देवता), अर्धनारीश्वर (पुरुष और स्त्री शक्ति का संतुलन), पशुपतिनाथ (समस्त जीवों के स्वामी) आदि का ध्यान और पूजा की जाती है। प्रत्येक रूप एक विशिष्ट आध्यात्मिक पाठ सिखाता है।

श्रावण मास का वैज्ञानिक महत्व (Scientific Significance of Shravan Maas)
धार्मिक परंपराओं के पीछे अक्सर गहरे वैज्ञानिक और सामाजिक कारण छुपे होते हैं। श्रावण मास के नियम भी इसका अपवाद नहीं हैं:
1. स्वास्थ्य और पाचन क्रिया का संतुलन (आयुर्वेदिक दृष्टिकोण)
- कमजोर पाचन अग्नि: वर्षा ऋतु में सूर्य की किरणें पृथ्वी पर कम पड़ती हैं, जिससे शरीर की पाचन अग्नि (जठराग्नि) कमजोर हो जाती है। इस दौरान गरिष्ठ भोजन (भारी, तेल-मसालेदार) पचने में कठिनाई होती है, जिससे पेट संबंधी समस्याएं बढ़ सकती हैं।
- उपवास और हल्का आहार: श्रावण में व्रत रखने और हल्का, सात्विक भोजन करने की सलाह दी जाती है (जैसे फल, सब्जियां, दूध, दही, साबूदाना)। यह शरीर को डिटॉक्सिफाई (विषहरण) करने और पाचन तंत्र को आराम देने में मदद करता है।
- पत्तेदार सब्जियों से परहेज: इस महीने में पत्तेदार सब्जियों (पालक, मेथी, बथुआ, गोभी) से परहेज करने की सलाह दी जाती है क्योंकि बारिश में उनमें बैक्टीरिया, कीड़े और फंगस की वृद्धि की संभावना बढ़ जाती है।
- मेटाबॉलिक रेट में वृद्धि: कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि नियमित अंतराल पर उपवास रखने से मेटाबॉलिक रेट में 3-14% तक की वृद्धि हो सकती है, जिससे पाचन क्रिया सुधरती है और कैलोरी बर्न होने में मदद मिलती है।
- रोग प्रतिरोधक क्षमता: व्रत रखने से शरीर में नई रोग प्रतिरोधक कोशिकाओं के बनने में मदद मिलती है, जिससे इम्यून सिस्टम मजबूत होता है और बीमारियों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है।
2. पर्यावरणीय शुद्धि और संतुलन
- जल का महत्व: श्रावण मास में भारी वर्षा होती है। शिवलिंग पर जल चढ़ाने (जलाभिषेक) की परंपरा प्रकृति के प्रति कृतज्ञता और जल के महत्व को दर्शाती है। जल को शिव का ही एक स्वरूप (या सृष्टि का प्रथम तत्व) माना गया है। यह क्रिया पर्यावरण में जल संतुलन और शुद्धि की प्रतीक है।
- हरियाली और ऑक्सीजन: वर्षा ऋतु में चारों ओर हरियाली छा जाती है, जिससे वातावरण में ऑक्सीजन का स्तर बढ़ता है। यह मानसिक शांति और शारीरिक स्फूर्ति प्रदान करता है। शिव का कैलाश में रमना शांति और आनंद का प्रतीक है, जो इस प्राकृतिक सौंदर्य से जुड़ता है।
- नकारात्मकता का निष्कासन: श्रावण में पूजा-पाठ, हवन और मंत्रोच्चार से निकलने वाली सकारात्मक ऊर्जा वातावरण को शुद्ध करती है और नकारात्मकता को दूर करती है।
3. मानसिक शांति और भावनात्मक संतुलन

- ध्यान और शांति: वर्षा का शांत माहौल और धार्मिक अनुष्ठानों में लीन होना मन को शांत करता है। शिवलिंग पर जल चढ़ाने से चित्त शांत होता है, गुस्सा नियंत्रित होता है और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
- नियमित दिनचर्या: व्रत और पूजा के नियम एक नियमित दिनचर्या बनाते हैं, जो मानसिक अनुशासन और स्थिरता लाता है।
- सामुदायिक जुड़ाव: मंदिरों में भीड़, सामूहिक पूजा और अनुष्ठान सामाजिक जुड़ाव को बढ़ावा देते हैं, जिससे अकेलापन कम होता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- मौन व्रत: इस मास में मौन व्रत धारण करने की भी परंपरा है, जिससे व्यक्ति अपनी वाणी पर संयम रखकर आत्म-नियंत्रण और बौद्धिक क्षमता बढ़ाता है।
श्रावण मास में क्या करें और क्या न करें (Do’s and Don’ts in Shravan Maas)

श्रावण मास को पूर्ण लाभ के साथ बिताने के लिए कुछ विशेष नियमों का पालन किया जाता है:
क्या करें (Do’s):
- शिव आराधना: प्रतिदिन सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और भगवान शिव तथा माता पार्वती की पूजा करें।
- जलाभिषेक और रुद्राभिषेक: शिवलिंग पर जल, दूध, दही, घी, शहद, शक्कर (पंचामृत) और बेलपत्र, धतूरा, भांग, आक के फूल, शमी पत्र, चंदन, भस्म अर्पित करें।
[Video: शिवलिंग पर जल चढ़ाने से क्या होता है? यहां पढ़ें इसके - TV9 Hindi]
- मंत्र जाप: ‘ॐ नमः शिवाय’ का अधिक से अधिक जाप करें। महामृत्युंजय मंत्र (ॐ त्र्यंबकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥) का जाप आरोग्य और भय मुक्ति के लिए अत्यंत लाभकारी है।
- सोमवार व्रत: श्रावण सोमवार का व्रत रखें। यदि पूरे दिन का व्रत संभव न हो तो फलाहार व्रत (केवल फल और दूध) रख सकते हैं।
- सात्विक भोजन: हल्का, सुपाच्य और सात्विक भोजन करें। मांसाहार और तामसिक भोजन से बचें।
- ब्रह्मचर्य का पालन: इस पूरे माह ब्रह्मचर्य का पालन करना आध्यात्मिक उन्नति के लिए शुभ माना जाता है।
- ध्यान और योग: शिव को योगीश्वर माना जाता है। इस माह में ध्यान और योग का अभ्यास करना मानसिक शांति और एकाग्रता बढ़ाता है।
- शिव चालीसा और शिव तांडव स्तोत्र: नियमित रूप से शिव चालीसा और शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करें। शिव तांडव स्तोत्र का पाठ रावण द्वारा रचित है और यह भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है।
- दान: अपनी सामर्थ्य के अनुसार गरीब और जरूरतमंदों को दान करें।
- नकारात्मकता से बचें: क्रोध, लोभ, ईर्ष्या जैसी नकारात्मक भावनाओं से दूर रहें और मन को शांत रखें।
- शिव परिवार की पूजा: यदि आप गृहस्थ हैं तो शिव परिवार (शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय, नंदी) की पूजा अवश्य करें।
क्या न करें (Don’ts):
- मांसाहार और मदिरा सेवन: इस माह में मांसाहार, शराब और अन्य नशीले पदार्थों का सेवन सख्त वर्जित है।
- तामसिक भोजन: प्याज, लहसुन और अन्य तामसिक खाद्य पदार्थों से बचें।
- पत्तेदार सब्जियां: वर्षा ऋतु में पत्तेदार सब्जियों में बैक्टीरिया और कीड़े पनपने का खतरा होता है, इसलिए इनका सेवन न करने की सलाह दी जाती है।
- शरीर पर तेल लगाना: श्रावण मास में तेल मालिश से परहेज करने की मान्यता है।
- नाखून/बाल काटना: कुछ लोग इस माह में नाखून काटने और बाल कटवाने से भी परहेज करते हैं।
- अपमानजनक भाषा: किसी का भी अपमान न करें और कटु वचन बोलने से बचें।
- दूध का अनादर: सावन में दूध का सेवन कम किया जाता है, लेकिन इसे फेंकने या अनादर करने से बचें। इसका उपयोग शिवजी के अभिषेक में किया जाता है।
- सुबह देर तक सोना: ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करना और पूजा करना शुभ माना जाता है।
श्रावण मास में विशेष पूजा विधियाँ और अनुष्ठान
श्रावण मास में कई विशेष पूजा विधियाँ और अनुष्ठान किए जाते हैं, जो शिव भक्तों के लिए अत्यंत फलदायी माने जाते हैं:
1. जलाभिषेक (Jalabhishek):
शिवलिंग पर शुद्ध जल चढ़ाना सबसे सरल और महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। यह मन की शांति, क्रोध पर नियंत्रण और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने में मदद करता है। जल भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है क्योंकि उन्होंने विषपान के बाद अपनी दाहक शक्ति को शांत करने के लिए जल ग्रहण किया था।
2. रुद्राभिषेक (Rudrabhishek):
यह भगवान शिव का सबसे शक्तिशाली और पवित्र अभिषेक माना जाता है। इसमें शिवलिंग को दूध, दही, शहद, घी, शक्कर, गन्ने का रस, गंगाजल आदि से स्नान कराया जाता है, साथ ही वैदिक मंत्रों, विशेष रूप से ‘रुद्राष्टाध्यायी’ का पाठ किया जाता है। रुद्राभिषेक रोग, दोष, भय और संकटों से मुक्ति दिलाता है और समृद्धि व सकारात्मकता लाता है।
3. बेलपत्र और धतूरे का महत्व:
- बेलपत्र: भगवान शिव को बेलपत्र अत्यंत प्रिय हैं। शास्त्रों के अनुसार, बेलपत्र के तीन पत्ते त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) का प्रतीक माने जाते हैं और यह शिव के त्रिनेत्र का भी प्रतिनिधित्व करते हैं। बेलपत्र चढ़ाने से मन को शांति मिलती है और कष्टों का नाश होता है।
- धतूरा और आक के फूल: शिव को धतूरा और आक के फूल भी अर्पित किए जाते हैं, जो उनके वैरागी स्वरूप और विष को धारण करने की शक्ति को दर्शाते हैं। मान्यता है कि धतूरा चढ़ाने से ऐश्वर्य, मान-सम्मान और प्रतिष्ठा बढ़ती है।
4. महामृत्युंजय मंत्र का जाप:
श्रावण मास में महामृत्युंजय मंत्र (ॐ त्र्यंबकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥) का 108 बार जाप करना अत्यंत शुभ माना गया है। यह मंत्र रोग, भय, मृत्यु और क्लेशों से मुक्ति के लिए अत्यंत प्रभावशाली है।
5. शिव तांडव स्तोत्र का पाठ:
लंकापति रावण द्वारा रचित शिव तांडव स्तोत्र भगवान शिव की स्तुति में गाया गया एक शक्तिशाली स्त्रोत है। श्रावण मास में इसका पाठ करने से महादेव प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। यह वचन सिद्धि और शनि दोष से मुक्ति में भी सहायक माना जाता है।
6. पार्थिव शिवलिंग पूजा:
श्रावण मास में मिट्टी से पार्थिव शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा करने का भी विशेष महत्व है। यह पर्यावरण के प्रति सम्मान और अपनी जड़ों से जुड़े रहने का प्रतीक है।
7. पंचामृत का महत्व:
पूजा में पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी और शक्कर का मिश्रण) का प्रयोग महत्वपूर्ण है। यह शरीर को शुद्ध करता है और स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद माना जाता है। इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।
महाराष्ट्र में श्रावण मास का विशेष स्वरूप (Shravan Maas in Maharashtra: A Local Perspective)
महाराष्ट्र में श्रावण मास को अत्यंत श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। यहाँ की परंपराएं और अनुष्ठान देश के अन्य हिस्सों से कुछ भिन्न और विशिष्ट हो सकते हैं:

- सोमवार व्रत का महत्व: महाराष्ट्र में श्रावण सोमवार को ‘सोमवारचे व्रत’ के रूप में बहुत गंभीरता से लिया जाता है। महिलाएं विशेष रूप से उपवास रखती हैं और मंदिरों में शिवजी का जलाभिषेक व पूजा-अर्चना करती हैं।
- मंगला गौरी पूजा: श्रावण मास के प्रत्येक मंगलवार को महाराष्ट्र में ‘मंगला गौरी’ पूजा का विधान है। यह नवविवाहित महिलाओं और उन स्त्रियों द्वारा की जाती है जो अपने पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं। इसमें देवी पार्वती की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
- नाग पंचमी का उत्साह: श्रावण मास में नाग पंचमी का त्योहार महाराष्ट्र में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन नाग देवताओं की पूजा की जाती है, उन्हें दूध और लावे का भोग लगाया जाता है। कई स्थानों पर सपेरे सांप लेकर आते हैं, और लोग उनकी पूजा करते हैं। कुछ लोग घरों में नागों के चित्र बनाकर या मिट्टी के नाग बनाकर पूजते हैं।
- पवित्र यात्राएं: महाराष्ट्र के लोग इस दौरान औंढा नागनाथ, भीमाशंकर, घृष्णेश्वर, त्र्यंबकेश्वर (ये महाराष्ट्र में स्थित ज्योतिर्लिंग हैं) जैसे प्रमुख शिव मंदिरों की यात्रा करते हैं। स्थानीय शिवालयों में भी विशेष भीड़ और धार्मिक आयोजन होते हैं।
- अखंड भजन-कीर्तन: पूरे श्रावण माह में, विशेषकर गाँवों और कस्बों में, मंदिरों और घरों में अखंड भजन-कीर्तन का आयोजन होता है, जिससे वातावरण भक्तिमय हो जाता है।
- सात्विक आहार: महाराष्ट्र में भी इस दौरान सात्विक आहार का विशेष ध्यान रखा जाता है। व्रत के दौरान फलाहार और साबूदाना खिचड़ी जैसे व्यंजन लोकप्रिय होते हैं।
निष्कर्ष: श्रावण मास – जीवन परिवर्तन का एक स्वर्णिम अवसर
श्रावण मास केवल एक धार्मिक महीना नहीं है, बल्कि यह आत्म-चिंतन, शुद्धि और प्रकृति के साथ गहरे जुड़ाव का एक अद्भुत अवसर है। इसका आध्यात्मिक महत्व हमें ईश्वर के प्रति समर्पण और कृतज्ञता सिखाता है, जबकि इसका वैज्ञानिक पहलू हमें स्वस्थ जीवन शैली और प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाने के लिए प्रेरित करता है।
भगवान शिव की आराधना, व्रत, उपवास और मंत्र जाप से न केवल हमें आध्यात्मिक शांति मिलती है, बल्कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में भी सुधार होता है। यह महीना हमें अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखने, नकारात्मकता से दूर रहने और सकारात्मक ऊर्जा को अपने भीतर समाहित करने का मौका देता है।
इसलिए, इस पवित्र श्रावण मास में, आइए हम सभी महादेव की भक्ति में लीन होकर अपने जीवन को नई ऊर्जा और सकारात्मकता से भरें। नियमों का पालन करें, प्रकृति का सम्मान करें और इस कल्याणकारी महीने का पूर्ण लाभ उठाएं ताकि आपका जीवन सुख, शांति और समृद्धि से परिपूर्ण हो सके।
हर हर महादेव!