
भारतीय संस्कृति में त्योहार केवल परंपराओं का निर्वहन नहीं होते, बल्कि वे सामाजिक, पारिवारिक और नैतिक मूल्यों को सुदृढ़ करने का माध्यम भी होते हैं। इन्हीं में से एक अत्यंत महत्वपूर्ण और भावनात्मक त्योहार है रक्षाबंधन (Raksha Bandhan)। यह पर्व श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, और इस वर्ष, यह 9 अगस्त 2025 (शनिवार) को आ रहा है। यह दिन भाई और बहन के बीच के अटूट प्रेम, विश्वास और एक-दूसरे के प्रति कर्तव्य और सुरक्षा के वचन को समर्पित है।
हालांकि, रक्षाबंधन का महत्व केवल भाई-बहन के रिश्ते तक ही सीमित नहीं है। इतिहास और पौराणिक कथाओं में इसके कई ऐसे संदर्भ मिलते हैं, जो दर्शाते हैं कि यह त्योहार राजाओं और प्रजा के बीच, गुरु और शिष्य के बीच, तथा सैनिकों और राष्ट्र के बीच भी सुरक्षा, सम्मान और एकजुटता के बंधन का प्रतीक रहा है। यह सामाजिक सद्भाव, नारी के सम्मान और एक दूसरे के प्रति जिम्मेदारी का उत्सव है।
इस विस्तृत लेख में, हम रक्षाबंधन के ऐतिहासिक, पौराणिक और सामाजिक पहलुओं पर गहराई से प्रकाश डालेंगे। हम यह समझने का प्रयास करेंगे कि कैसे एक साधारण धागा (राखी) इतना शक्तिशाली बंधन बन जाता है, इसकी विभिन्न कथाएं क्या हैं, पूजा विधि क्या है, और कैसे यह त्योहार बदलते समय के साथ अपने मूल अर्थ को बनाए रखते हुए, सामाजिक एकजुटता का संदेश देता है।
रक्षाबंधन क्या है और यह कब मनाया जाता है? (What is Raksha Bandhan & When is it Celebrated?)
रक्षाबंधन शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है: ‘रक्षा’ जिसका अर्थ है सुरक्षा, और ‘बंधन’ जिसका अर्थ है बांधना या बंधन। इस प्रकार, रक्षाबंधन का अर्थ है ‘सुरक्षा का बंधन’। इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर एक पवित्र धागा (राखी) बांधती हैं, जो भाई की लंबी आयु, सफलता और सुरक्षा की कामना का प्रतीक होता है। बदले में, भाई अपनी बहन को हर परिस्थिति में उसकी रक्षा करने और उसका साथ देने का वचन देता है।
- 2025 में रक्षाबंधन की तिथि:
- रक्षाबंधन तिथि प्रारंभ: 9 अगस्त 2025 को सुबह 08:34 बजे
- रक्षाबंधन तिथि समाप्त: 10 अगस्त 2025 को सुबह 08:35 बजे
- रक्षाबंधन का दिन: 9 अगस्त 2025 (शनिवार)
- रक्षाबंधन भद्रा काल: भद्रा काल में राखी बांधना अशुभ माना जाता है। 9 अगस्त को भद्रा दोपहर 03:00 बजे से शाम 04:30 बजे तक रह सकती है (सटीक समय पंचांग के अनुसार भिन्न हो सकता है)। राखी बांधने के लिए शुभ मुहूर्त भद्रा रहित काल होता है।
- शुभ मुहूर्त: 9 अगस्त 2025 को सुबह 08:35 बजे के बाद से दोपहर 02:30 बजे तक (लगभग, भद्रा को छोड़कर)।
पौराणिक कथाओं में रक्षाबंधन का महत्व (Mythological Significance of Raksha Bandhan)
रक्षाबंधन की परंपरा कई सदियों पुरानी है और इसके पीछे अनेक पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, जो इस त्योहार के गहरे अर्थ को बताती हैं:
1. इंद्र और इंद्राणी की कथा (महाभारत काल)
यह सबसे प्राचीन कथाओं में से एक है। महाभारत के अनुसार, एक बार देवताओं और असुरों के बीच भीषण युद्ध चल रहा था, जिसमें देवता हारने लगे थे। भगवान इंद्र (देवताओं के राजा) भी असुरों के राजा बलि से भयभीत थे। तब इंद्र की पत्नी इंद्राणी (शची) ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। विष्णु जी ने इंद्राणी को एक पवित्र धागा दिया और कहा कि इसे अपने पति की कलाई पर बांध दें, यह उनकी रक्षा करेगा। इंद्राणी ने श्रावण पूर्णिमा के दिन इंद्र की कलाई पर वह धागा बांधा, जिसके बाद इंद्र ने युद्ध में विजय प्राप्त की। यह कथा दर्शाती है कि राखी केवल भाई-बहन के लिए नहीं, बल्कि किसी भी ऐसे व्यक्ति के लिए सुरक्षा और जीत का प्रतीक हो सकती है जिसकी हमें रक्षा करनी है।
2. द्रौपदी और भगवान कृष्ण की कथा (महाभारत काल)

यह रक्षाबंधन से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध और भावनात्मक कथा है। जब शिशुपाल का वध करते समय भगवान कृष्ण की उंगली कट गई थी और उसमें से रक्त बह रहा था, तब पास बैठी द्रौपदी ने तुरंत अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर कृष्ण की उंगली पर बांध दिया। इस निस्वार्थ कार्य से कृष्ण अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने द्रौपदी को आजीवन हर संकट से बचाने का वचन दिया। जब कौरवों द्वारा द्रौपदी का चीरहरण किया जा रहा था, तब कृष्ण ने अपने वचन को पूरा करते हुए उनके सम्मान की रक्षा की। यह कथा भाई-बहन के बीच के पवित्र और अटूट रिश्ते को दर्शाती है, जहाँ वचनबद्धता और रक्षा का सर्वोच्च महत्व है।
3. राजा बलि और देवी लक्ष्मी की कथा (वामन अवतार)
भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी थी और छलपूर्वक उनका सारा राज्य पाताल लोक भेज दिया। राजा बलि भगवान विष्णु के परम भक्त थे, इसलिए उन्होंने विष्णु जी से पाताल लोक में उनके साथ निवास करने का आग्रह किया। भगवान विष्णु राजा बलि के साथ रहने लगे, जिससे देवी लक्ष्मी चिंतित हो गईं। श्रावण पूर्णिमा के दिन, देवी लक्ष्मी ने राजा बलि के पास जाकर उन्हें राखी बांधी और उन्हें अपना भाई बनाया। राखी के बदले में, बलि ने देवी लक्ष्मी से वर मांगने को कहा। देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को अपने साथ वैकुंठ लौटाने का वर मांगा। इस प्रकार, राजा बलि ने अपनी बहन की इच्छा का सम्मान करते हुए भगवान विष्णु को मुक्त कर दिया। यह कथा धर्म और भक्ति के साथ-साथ भाई-बहन के रिश्ते की गहराई को भी दर्शाती है।
4. संतोषी माता की कथा
कहा जाता है कि भगवान गणेश की दो बहनें थीं। जब गणेश जी ने देखा कि उनकी बहनें हर रक्षाबंधन पर उन्हें राखी बांधने आती हैं, लेकिन उनके खुद की कोई बहन नहीं है, तो वे उदास हो गए। तब भगवान गणेश की दो पत्नियों, रिद्धि और सिद्धि ने, अपने बेटों शुभ और लाभ के कहने पर, गणेश जी के लिए एक पुत्री की रचना की, जिसका नाम संतोषी रखा गया। यह कथा बताती है कि कैसे एक त्योहार की भावना से परिवार में खुशियां और नए रिश्ते बनते हैं।
5. यमराज और यमुना की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, यमराज ने अपनी बहन यमुना से कई वर्षों तक मुलाकात नहीं की थी। जब यमुना ने उन्हें राखी बांधी, तो यमराज बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने वरदान दिया कि जो भी भाई श्रावण पूर्णिमा के दिन यमुना में स्नान करके अपनी बहन से राखी बंधवाएगा, उसे यमलोक की पीड़ा नहीं भोगनी पड़ेगी। यह कथा भाई-बहन के दीर्घायु और कल्याण की कामना से भी जुड़ती है।
रक्षाबंधन का ऐतिहासिक और सामाजिक महत्व (Historical & Social Significance)
पौराणिक कथाओं के अलावा, रक्षाबंधन का इतिहास और सामाजिक संदर्भ भी अत्यंत समृद्ध रहा है:
1. रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूँ
यह एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक घटना है। 16वीं शताब्दी में, चित्तौड़ की रानी कर्णावती (महाराणा सांगा की विधवा) पर गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने आक्रमण किया। अपनी रक्षा के लिए, रानी कर्णावती ने मुगल सम्राट हुमायूँ को राखी भेजकर उनसे मदद मांगी। हुमायूँ ने अपनी ‘राखी बहन’ की रक्षा के लिए अपनी सेना भेजी, हालांकि वह समय पर नहीं पहुंच सके। यह घटना दर्शाती है कि कैसे राखी ने धर्म और राज्य की सीमाओं से परे एक भाईचारे और सुरक्षा का बंधन बनाया।
2. गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर और जन-जागरूकता
बंगाल विभाजन (1905) के दौरान, गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने रक्षाबंधन को एक सामाजिक एकता के पर्व के रूप में पुनर्जीवित किया। उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों से एक-दूसरे की कलाई पर राखी बांधने का आग्रह किया, ताकि वे विभाजनकारी नीतियों के खिलाफ एकजुटता और भाईचारा प्रदर्शित कर सकें। यह घटना दर्शाती है कि रक्षाबंधन कैसे सामाजिक सद्भाव और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बन सकता है।
3. सैनिक और देश का बंधन
सीमा पर तैनात सैनिकों को भी देश की आम जनता द्वारा राखियां भेजी जाती हैं। यह दर्शाता है कि राखी केवल रक्त संबंध तक सीमित नहीं है, बल्कि यह देश के रक्षकों के प्रति सम्मान, कृतज्ञता और उनकी सुरक्षा की कामना का भी प्रतीक है। यह एक नागरिक और उसके देश के बीच के कर्तव्य और सुरक्षा के बंधन को मजबूत करता है।
4. सामाजिक सौहार्द और जातिगत बाधाओं का टूटना
कई भारतीय गाँवों और कस्बों में, लोग अपनी जाति या धर्म की परवाह किए बिना एक-दूसरे को राखी बांधते हैं। यह त्योहार सामाजिक बाधाओं को तोड़कर लोगों को एक साथ लाता है और सामुदायिक भावना को बढ़ावा देता है।
5. स्त्री सम्मान और सुरक्षा का प्रतीक
रक्षाबंधन महिलाओं की सुरक्षा और उनके सम्मान का प्रतीक भी है। यह पुरुषों को महिलाओं के प्रति सम्मानजनक और सुरक्षात्मक व्यवहार रखने का संदेश देता है, चाहे वह उनकी बहन हो, दोस्त हो या समाज की कोई भी महिला।
रक्षाबंधन की पूजा विधि और शुभ मुहूर्त (Raksha Bandhan Puja Vidhi & Auspicious Time)

रक्षाबंधन के दिन बहनें अपने भाई की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए पूजा करती हैं और राखी बांधती हैं:
1. पूजा की सामग्री:
- राखी (विभिन्न रंगों और डिज़ाइनों में उपलब्ध)
- तिलक (रोली और चावल)
- दीपक
- मिठाई (पारंपरिक मिठाई जैसे बेसन के लड्डू, घेवर, बालूशाही)
- नारियल (शुभ माना जाता है)
- राखी बांधने के लिए एक थाली
- कुछ पैसे (भाई द्वारा बहन को दिया जाने वाला उपहार)
2. राखी बांधने की विधि:
- भाई और बहन दोनों सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- एक थाली में राखी, रोली, चावल, दीपक और मिठाई रखें।
- भाई को एक स्वच्छ आसन पर बिठाएं। उसका मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए।
- बहन भाई के माथे पर रोली और चावल का तिलक लगाएं।
- फिर बहन दीपक जलाकर भाई की आरती करे।
- इसके बाद, बहन भाई की दाहिनी कलाई पर राखी बांधे। राखी बांधते समय यह मंत्र बोला जा सकता है:
- “येन बद्धो बली राजा, दानवेन्द्रो महाबलः।
- तेन त्वां प्रतिबध्नामि, रक्षे मा चल मा चल।।”
- अर्थ: “जिस रक्षा सूत्र से महान शक्तिशाली राजा बलि को बांधा गया था, उसी से मैं तुम्हें बांधती हूँ, हे रक्षा सूत्र! तुम अटल रहना।”
- राखी बांधने के बाद बहन भाई को मिठाई खिलाए।
- भाई अपनी बहन को उपहार दे और उसकी रक्षा का वचन दे।
3. भद्रा काल का ध्यान:
ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार, भद्रा काल में राखी बांधना अशुभ माना जाता है क्योंकि रावण को भद्रा काल में ही राखी बांधी गई थी, जिसके कारण उसका विनाश हुआ। इसलिए, शुभ मुहूर्त में ही राखी बांधने का प्रयास करें। यदि भद्रा काल में ही राखी बांधना पड़े, तो भद्रा के समाप्त होने के बाद ही पर्व मनाना चाहिए या विशेष प्रार्थना करनी चाहिए।
- 2025 में भद्रा का समय: 9 अगस्त 2025 को दोपहर 03:00 बजे से शाम 04:30 बजे तक (यह एक अनुमान है, सटीक स्थानीय पंचांग देखें)।
- सबसे शुभ समय: 9 अगस्त को सुबह 08:35 बजे (पूर्णिमा तिथि प्रारंभ) के बाद से दोपहर 02:30 बजे के बीच का समय (भद्रा से पहले) राखी बांधने के लिए उत्तम रहेगा।
रक्षाबंधन का बदलता स्वरूप और आधुनिक प्रासंगिकता (Evolving Form & Modern Relevance)
समय के साथ रक्षाबंधन के उत्सव में कुछ बदलाव आए हैं, लेकिन इसका मूल सार आज भी बरकरार है:
- केवल भाई-बहन नहीं: आज के समय में, लोग केवल अपने रक्त संबंधी भाई-बहनों को ही नहीं, बल्कि अपने दोस्त, सहकर्मी, या किसी भी ऐसे व्यक्ति को राखी बांधते हैं जिनसे वे सुरक्षा और अपनेपन का रिश्ता महसूस करते हैं। यह गुरु-शिष्य, सैनिक-आम नागरिक, और यहाँ तक कि पौधों और पर्यावरण को भी राखी बांधकर उनके संरक्षण का संकल्प लेने तक फैल गया है।
- ई-राखी और वर्चुअल उत्सव: जो भाई-बहन दूर रहते हैं, वे एक-दूसरे को ई-राखी भेजते हैं या वीडियो कॉल पर राखी बांधने की रस्म निभाते हैं। यह तकनीक ने रिश्तों को दूरियों के बावजूद जोड़े रखा है।
- महिलाओं का सशक्तिकरण: यह त्योहार अब केवल पुरुषों द्वारा महिलाओं की रक्षा तक सीमित नहीं है। आज बहनें भी अपने भाईयों की रक्षा और उन्नति की कामना करती हैं, और कई बार वे स्वयं भी अपने भाईयों की ढाल बनती हैं। यह परस्पर सम्मान और समर्थन का प्रतीक बन गया है।
- सामाजिक जिम्मेदारी: राखी का बंधन हमें समाज के कमजोर वर्ग की सुरक्षा और उनकी मदद करने की भी प्रेरणा देता है। यह सामाजिक जिम्मेदारी और मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देता है।
- पर्यावरण के लिए राखी: कुछ संगठन और व्यक्ति पेड़ों को राखी बांधकर पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते हैं, जो प्रकृति के प्रति हमारी जिम्मेदारी को दर्शाता है।
महाराष्ट्र में रक्षाबंधन का उत्सव (Raksha Bandhan Celebrations in Maharashtra)
महाराष्ट्र में रक्षाबंधन को ‘रक्षाबंधन’, ‘राखी पौर्णिमा’ या ‘नारळी पौर्णिमा’ के रूप में मनाया जाता है। यहाँ इस पर्व की कुछ विशिष्ट परंपराएं हैं:
- नारळी पौर्णिमा (नारियल पूर्णिमा): यह त्योहार महाराष्ट्र के तटीय क्षेत्रों (जैसे मुंबई, कोंकण) में विशेष रूप से मनाया जाता है। इस दिन मछुआरे समुदाय (कोली) समुद्र देवता वरुण को प्रसन्न करने के लिए नारियल अर्पित करते हैं और समुद्र की पूजा करते हैं, क्योंकि वे उन्हें अपनी आजीविका का स्रोत मानते हैं। वे अपनी नावों को सजाते हैं और समुद्र में नारियल चढ़ाते हैं, जो समुद्र के प्रति कृतज्ञता और उसकी सुरक्षा की कामना का प्रतीक है।
- बहन-भाई का अनूठा प्रेम: पूरे महाराष्ट्र में भाई-बहन इस दिन को बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं। बहनें अपने भाईयों के लिए विशेष राखियां चुनती हैं और घरों में पारंपरिक महाराष्ट्रीयन मिठाइयां (जैसे पूरनपोली, मोदक, बेसन के लड्डू) बनाई जाती हैं।
- पारंपरिक वेशभूषा: कई बहनें और भाई इस दिन पारंपरिक महाराष्ट्रीयन वेशभूषा धारण करते हैं।
- मंदिरों में पूजा: इस दिन कई लोग मंदिरों में जाकर भगवान का आशीर्वाद लेते हैं और अपने भाई-बहनों के कल्याण के लिए प्रार्थना करते हैं।
निष्कर्ष: रक्षाबंधन – रिश्तों की गहराई का पर्व
रक्षाबंधन एक ऐसा त्योहार है जो केवल भाई-बहन के रिश्ते को ही नहीं, बल्कि सुरक्षा, कर्तव्य, सम्मान और सामाजिक एकजुटता के व्यापक मूल्यों को भी दर्शाता है। यह हमें सिखाता है कि रिश्ते केवल रक्त संबंध से नहीं बनते, बल्कि विश्वास, प्रेम और एक-दूसरे के प्रति जिम्मेदारी की भावना से मजबूत होते हैं।
इस 9 अगस्त 2025 को जब आप अपने भाई की कलाई पर राखी बांधें या किसी ऐसे व्यक्ति से राखी बंधवाएं जो आपके लिए महत्वपूर्ण है, तो इस पवित्र धागे के गहरे अर्थ को याद रखें। यह केवल एक धागा नहीं, बल्कि एक अटूट वचन है – वचन सुरक्षा का, सम्मान का, और जीवन भर साथ निभाने का।
आइए, इस रक्षाबंधन पर हम सभी अपने रिश्तों को और मजबूत करें और समाज में सुरक्षा और सद्भाव का संदेश फैलाएं।
शुभ रक्षाबंधन!
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